अब राजनीतिक हलकों में चर्चा है कि जसवंत सिंह बिश्नोई या तो निर्दलीय चुनाव लड़ सकते हैं या फिर पार्टी बदल सकते हैं। पिछले पांच सालों से पार्टी ने कोई पद नहीं मिलने के बावजूद बिश्नोई जमीनी स्तर पर सक्रिय रहे और विधानसभा चुनाव में भी अपनी पूरी सक्रियता दिखाई थी। विधानसभा चुनाव में उनको टिकट नहीं दिए जाने के बाद उन्हें लोकसभा चुनाव में उम्मीद थी। लेकिन, इस लिस्ट में भी उनका नाम नहीं है। उन्होंने एक और पोस्ट कर लिखा- ‘मैने फैसला किया है अब मैं एक पोस्ट चुनाव घोषणा के बाद लिखूंगा, उसके बाद भविष्य में किसी प्रकार की पोस्ट नहीं लिखूंगा।’ बिश्नोईके रालोपा में शामिल होने की भी चर्चा तेज है।
शेरगढ व पोकरण में गजेन्द्र सिंह शेखावत से नाराजगी भी चर्चा में हैं। इधर, राजपूत समाज में जोधपुर वर्सेज शेखावटी वाला माहौल बना है। जिसके चलते शेखावत से नाराजगी है। इसका फायदा जसवंत सिंह को मिल सकता है। जसवंत सिंह अपने नाम से चैरिटेबल ट्रस्ट भी चलाते हैं। इस ट्रस्ट के माध्यम से वह ग्रामीण क्षेत्रों से जुड़े हैं। वे एक बार विधायक व दो बार सांसद रह चुके हैं। पहला चुनाव 1993 में लड़ा और रामसिंह विश्नोई को हराया। 1999 से 2009 तक दो बार सांसद रह चुके हैं। 1998 में भैरो सिंह की सरकार में कैबिनेट मंत्री रह चुके हैं।लोकसभा चुनाव में जसवंत सिंह
- 1996 में जसवंत सिंह अशोक गहलोत के सामने चुनाव लड़ा था। विश्नोई को 2 लाख 96 हजार 543 वोट मिले थे। अशोक गहलोत 54 हजार 367 वोट से जीते थे।
- 1998 में फिर से अशोक गहलोत के सामने जसवंत सिंह ने चुनाव लड़ा और मात्र 5 हजार 444 वोट से हारे।
- 1999 जसवंत सिंह विश्नोई 3 लाख 68 हजार 463 वोट लाकर कांग्रेस के पूनमचंद विश्नोई को 1 लाख 13 हजार 297 वोट से हराया।
- 2004 में जसवंत सिंह विश्नोई 4 लाख 33 हजार 429 वोट लाए और कांग्रेस के बद्रीराम जाखड़ को 42 हजार 495 वोट से हराया।
- 2009 में विश्नोई कांग्रेस की चंद्रेश कुमारी से 98 हजार 329 वोट से हारे।• 2014 में जसवंत सिंह को केंद्रीय ऊन विकास बोर्ड के अध्यक्ष रहे व वसुंधरा सरकार में 2018 में राज्य खादी ग्रामोद्योग के बोर्ड के अध्यक्ष रहे।
ये पोस्ट भी चर्चा में
इससे पहले जसवंत विश्नोई ने 2 मार्च को लिखा था- मेरा अनुभव कहता है कि जज्बातों को वहां प्रकट करो, जहां कद्र हो, यूं तो आंख से गिरा आंसू भी पानी लगता है। विश्नोई ने एक और सोशल मीडिया पोस्ट में लिखा- ए मेरे मन सफर ही सही, इस भीड़ से, हर रिश्ता थोड़ी देर में, बदल जाता है। यूं तो शोर बहुत है, अपनेपन
का, पर वक्त के आगे हर नकाब उतर जाता है। उन्होंने 2 मार्च को ही लिखा- समझने वाले समझ गए, ना समझे वो अनाड़ी।