रूस के विदेश मंत्रालय ने यह कहकर दुनिया में खलबली मचा दी है कि पीएम मोदी और पुतिन के बीच ‘नो लिमिट टॉक’ होगी. यानी इस बातचीत की कोई सीमा नहीं है. इसलिए चीन हो या अमेरिका, दुनिया के बड़े देशों की नजर इस बैठक पर है.
नई दिल्ली, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 8 जुलाई को रूस जा रहे हैं. वे अपने खास दोस्त और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से मुलाकात करेंगे. 22वें भारत-रूस वार्षिक शिखर सम्मेलन में शामिल होंगे. विदेश मंत्रालय के मुताबिक, दोनों नेताओं के बीच द्विपक्षीय और वैश्विक मुद्दों पर बात होगी. लेकिन रूस के विदेश मंत्रालय ने यह कहकर दुनिया में खलबली मचा दी है कि पीएम मोदी और पुतिन के बीच ‘नो लिमिट टॉक’ होगी. यानी इस बातचीत की कोई सीमा नहीं है. इसलिए चीन हो या अमेरिका, दुनिया के बड़े देशों की नजर इस बैठक पर है. एक्सपर्ट के मुताबिक, इस बातचीत में कुछ ऐसा निकलकर आने की संभावना है, जो चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के लिए सिरदर्द साबित हो सकता है.
विदेश मंत्रालय के मुताबिक, पीएम मोदी 08-09 को मास्को में रहेंगे. वहांं पुतिन के साथ लंबी द्विपक्षीय बातचीत होगी. कहा जा रहा है कि इसी कोई टाइमिंग तय नहीं की गई है. पीएम मोदी भारतीय समुदाय के लोगों को भी संबोधित करेंगे. 09-10 जुलाई को पीएम मोदी ऑस्ट्रिया जाएंगे. यह 41 वर्षों में किसी भारतीय प्रधानमंत्री की ऑस्ट्रिया की पहली यात्रा होगी. मोदी ऑस्ट्रिया के राष्ट्रपति से मुलाकात करेंगे और चांसलर से मिलेंगे. वहां के बिजनेसमैन से भी मिलने का कार्यक्रम है. लेकिन सबसे अहम दौरान रूस का है, जिस पर पूरी दुनिया की निगाह है.
पुतिन से मुलाकात अहम क्यों?
- पीएम मोदी ने तीसरे कार्यकाल में पहले द्विपक्षीय दौरे के लिए रूस को चुना है. दोनों नेताओं के बीच दिसंबर 2021 में आखिरी मुलाकात हुई थी. यह दौरा यूक्रेन युद्ध के बाद हो रहा है, जिस पर पूरी दुनिया की निगाह है. इसलिए इसके मायने भी बेहद खास हैं.
- यूक्रेन युद्ध के बाद जब पूरी दुनिया ने रूस से कच्चा तेल लेना बंद कर दिया, तब भारत रूस का सहयोगी बना. जमकर कच्चा तेल खरीदा. उसकी अर्थव्यवस्था डूबने नहीं दी. जाहिर तौर पर यह एजेंडे में सबसे ऊपर होगा.
- दोनों देश एक नया समझौता करने जा रहे हैं, जिसमें सैनिकों, युद्धपोतों और लड़ाकू विमानों की संयुक्त तैनाती शामिल होगी. भारत ने अब तक किसी भी देश के साथ ऐसा समझौता नहीं किया है.एक दूसरे के सैनिकों को रसद मुहैया कराने पर भी सहमति बन सकती है.
चीन को क्यों लगेगी मिर्ची
- भारत, रूस और चीन के बीच बढ़ते संबंध से चिंतित है. गलवान की घटना के बाद चीन रूस और दोस्ती बढ़ाने का कोई मौका नहीं छोड़ना चाहता, इसलिए पीएम मोदी की पुतिन से मुलाकात उसे चिढ़ाने वाली होगी.
- रूस और चीन के बीच दोस्ती में कुछ रुकवटें भी आई हैं. जैसे चीन दादागिरी दिखाता है, ये रूस को भी पता है. इसलिए यूरेशियाई क्षेत्र में चीन के प्रभाव को संतुलित करने के लिए भारत और रूस नए रास्ते तलाश सकते हैं.
- रूस-चीन की दोस्ती में दरार का सबसे बड़ा संकेत हाल ही में मिला. पुतिन पावर ऑफ साइबेरिया 2 गैस पाइपलाइन बिछाना चाहते थे, लेकिन इसपर चीन ने कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई. जबकि इसके लिए पुतिन चीन भी गए थे.
- पुतिन चीन के बाद उज्बेकिस्तान, उत्तर कोरिया और वियतनाम गए थे. उत्तर कोरिया के साथ उन्होंने बेहद मजबूत रक्षा समझौता किया जिसमें उनकी सेना का इस्तेमाल और उनकी रक्षा करना शामिल था. इससे चीन को दिक्कत हुई.
- पहले रूस सैन्य क्षेत्र में अपना प्रभाव रखता था और चीन आर्थिक क्षेत्र में, लेकिन अब चीन सैन्य क्षेत्र में भी दखल बढ़ा रहा है, जिससे रूस को दिक्कत हो रही है.चीन, उज्बेकिस्तान और किर्गिस्तान रेलवे लाइन को रूस आगे नहीं बढ़ा रहा है.
- एक्सपर्ट का मानना है कि तमाम बाधाओं के बावजूद रूस अभी भी भारत को चीन से ज्यादा स्वभाविक साझेदार और महत्वपूर्ण दोस्त मानता है. इससे चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के लिए दिक्कतें होती हैं.