Switzerland Summit: इसी साल मार्च में यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की ने भारत को औपचारिक शांति शिखर सम्मेलन के लिए आमंत्रित किया था। अब रूस-यूक्रेन संघर्ष पर स्विट्जरलैंड में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय शांति शिखर सम्मेलन के लिए भारत ने एक उच्च स्तरीय प्रतिनिधिमंडल भेजा है।
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रूस और यूक्रेन के बीच बीते दो साल से भी ज्यादा समय से युद्ध चल रहा है। फिलहाल इस संघर्ष के रुकने के संकेत भी नहीं हैं। ऐसे समय में दुनियाभर के 100 से अधिक नेता रूस-यूक्रेन संघर्ष के लिए शांति योजना बनाने के लिए शनिवार को स्विट्जरलैंड में जुटे हैं। इस जमावड़े में अमेरिकी उपराष्ट्रपति कमला हैरिस और यूरोपीय संघ, दक्षिण अमेरिकी, मध्य पूर्व और एशियाई देशों के राष्ट्रपति या प्रमुख भी शामिल हैं।
यह रूस-यूक्रेन के लिए शांति योजना बनाने के अब तक के सबसे महत्वाकांक्षी प्रयासों में से एक है। इसी साल मार्च में यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की ने भारत को भी औपचारिक शांति शिखर सम्मेलन के लिए आमंत्रित किया था। जनवरी 2024 में स्विस सरकार ने घोषणा की थी कि देश रूस-यूक्रेन युद्ध के शांति फॉर्मूले पर एक वैश्विक शिखर सम्मेलन की मेजबानी करेगा।
पहले जानते हैं स्विट्जरलैंड वार्ता चर्चा में क्यों है?
यह शिखर सम्मेलन ऐसे समय में हो रहा है जब इटली में एकत्रित जी-7 के नेता ने यूक्रेन के लिए 50 बिलियन यूरो के ऋण के लिए एक नए समझौते पर हस्ताक्षर किया है। ऋण को 2022 में रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद यूरोपीय संघ और अन्य पश्चिमी देशों द्वारा फ्रीज की गई रूसी केंद्रीय बैंक की परिसंपत्तियों पर ब्याज से होने वाले लाभ के जरिए सुरक्षित किया जाएगा।
दो दिवसीय शांति सम्मेलन ल्यूसर्न के बाहर लक्जरी बुर्गेनस्टॉक रिसॉर्ट में आयोजित किया जा रहा है। इसमें युद्ध को समाप्त करने के लिए यूक्रेन की प्रस्तावित 10 सूत्री योजना पर चर्चा की जाएगी। इसके साथ परमाणु खतरा, खाद्य सुरक्षा और यूक्रेन में मानवीय आवश्यकताओं पर भी चर्चा की जाएगी।
आखिर प्रस्तावित स्विट्जरलैंड वार्ता क्या-क्या है?
यह सम्मेलन ऐसे वक्त में हो रहा है जब शुक्रवार को रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने व्लादिमीर पुतिन ने मांग की कि यूक्रेन में युद्ध समाप्त करने के लिए उसे अधिक भूमि देनी होगी, अपने देश के अंदर तक मौजूद सैनिकों को वापस बुलाना होगा और नाटो में शामिल होने की अपनी कोशिशें छोड़ देनी होंगी। हालांकि, इन प्रस्तावों को यूक्रेन, अमेरिका और नाटो ने अस्वीकार कर दिया था। अब शांति सम्मेलन में संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता को बनाए रखने और उसका सम्मान करने के संयुक्त राष्ट्र के सिद्धांतों के महत्व पर चर्चा होने की उम्मीद है।
सम्मेलन के बारे में जानकारी रखने वाले लोगों का कहना है कि इसका उद्देश्य है कि किसी भी अनुपयोगी पहल के लिए जगह कम हो। इसे जेलेंस्की के लिए एक सफलता के रूप में देखा जाएगा, जो अपनी शांति योजना के लिए अंतर्राष्ट्रीय समर्थन जुटाने का लक्ष्य बना रहे हैं। शांति योजना में यूक्रेन से रूसी सैनिकों की पूरी तरह वापसी और 1991 के सोवियत-पूर्व की सीमाओं पर वापसी शामिल है।
बैठक में कौन-कौन शामिल होगा?
बुधवार को सऊदी क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान के साथ हुई वार्ता के बाद जेलेंस्की ने उम्मीद जताई थी कि सऊदी अरब भी इसमें शामिल हो सकता है। रूस ने इस बैठक को निरर्थक बताया है। उधर चीन ने कहा कि वह इसमें भाग नहीं लेगा, क्योंकि यह सम्मेलन रूस की भागीदारी सहित उसकी आवश्यकताओं को पूरा नहीं करता।
शिखर सम्मेलन में भारत से कौन शामिल हो रहा है?
यूक्रेन पर स्विट्जरलैंड में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय शिखर सम्मेलन के लिए भारत ने एक उच्च स्तरीय प्रतिनिधिमंडल भेजा है। यूक्रेनी राष्ट्रपति ने इटली में आयोजित जी-7 शिखर सम्मेलन के दौरान प्रधानमंत्री मोदी से मुलाकात की। प्रधानमंत्री मोदी ने यूक्रेनी राष्ट्रपति के साथ बैठक को बहुत उत्पादक बताया और कहा कि भारत यूक्रेन के साथ द्विपक्षीय संबंधों को और मजबूत करने के लिए उत्सुक है। नेताओं ने व्यापार, संबंधों के विस्तार और शिखर सम्मेलन की तैयारियों पर चर्चा की।
बैठक के बाद जारी एक बयान में जेलेंस्की ने कहा, ‘शिखर सम्मेलन में उच्च स्तरीय प्रतिनिधिमंडल भेजने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को धन्यवाद।’
बता दें कि मार्च 2024 में प्रधानमंत्री मोदी ने यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की से बात की थी। प्रधानमंत्री मोदी के साथ हुई वार्ता के बारे में जानकारी देते हुए यूक्रेनी राष्ट्रपति ने स्विट्जरलैंड वार्ता का जिक्र किया था। यूक्रेनी राष्ट्रपति ने बताया था कि उनके लिए भारत को औपचारिक शांति शिखर सम्मेलन में भाग लेते देखना महत्वपूर्ण होगा।
रूस-यूक्रेन मुद्दा हल करने में भारत की भूमिका अहम क्यों?
इस वार्ता का आयोजन स्विट्जरलैंड करने जा रहा है जो इसे समावेशी बनाना चाहता है। इसी सोच के तहत स्विस विदेश मंत्रालय ने ग्लोबल साउथ के नेताओं तक भी पहुंच बनाई है। फरवरी महीने में विदेश मंत्री इग्नाजियो कैसिस के भारत और चीन दौरों में रूस-यूक्रेन संघर्ष सबसे बड़ा विषय था। इस कड़ी में खुद युद्धरत देश यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की ने भारत को वार्ता के लिए आमंत्रित किया। जेलेंस्की का कहना है कि यूक्रेन दुनिया के उन सभी देशों के लिए खुला है जो उसकी संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान करते हैं।
युद्ध के शुरू होने के साथ दुनिया दो धड़ों में बंटना शुरू हो गई थी। यूक्रेन का साथ देने के लिए नाटो सदस्य देश खड़े हो गए तो अमेरिका, ब्रिटेन, पोलैंड, फ्रांस समेत कई देशों ने युद्ध से बाहर रहते हुए इसको मदद पहुंचानी शुरू कर दी। दूसरी ओर चीन, दक्षिण कोरिया, ईरान जैसे देश प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से रूस के साथ खड़े हुए। हालांकि, भारत ने किसी का पक्ष नहीं लिया। विदेश मंत्री एस. जयशंकर का कहना है कि भारत सार्वजनिक रूप से इस युद्ध की समाप्ति के लिए प्रतिबद्ध है।