सावन मास व महाशिवरात्रि के दौरान पूजा अर्चना करने वालों की कनकेश्वर महादेव मंदिर में संख्या बढ़ जाती है. आज हम आपको ग्राम कनकी में स्थित कनकेश्वर महादेव के स्थापना की कहानी बताने वाले हैं.
अनूप पासवान/कोरबा:- भगवान शिव के प्रति लोगों की आस्था यहां मौजूद प्राचीन शिवालयों से परिलक्षित है. शताब्दी वर्ष पुराने इतिहास को समेटे कोरबा जिले के मंदिरों में पाली का महादेव मंदिर, चैतुरगढ़ का शंकर गुफा के अंदर स्थित शिवलिंग व कनकी धाम का कनकेश्वर महादेव मंदिर शामिल है. इस मंदिर में वैसे तो हर रोज पूजा अनुष्ठान होते हैं, लेकिन सावन मास व महाशिवरात्रि के दौरान पूजा अर्चना करने वालों की संख्या बढ़ जाती है. आज हम आपको ग्राम कनकी में स्थित कनकेश्वर महादेव के स्थापना की कहानी बताने वाले हैं.
अनोखी है मंदिर स्थापना की कहानी
जिला मुख्यालय से 20 किलोमीटर दूर कनकी का कनकेश्वर महादेव मंदिर है. इसे चक्रेश्वर महादेव मंदिर भी कहा जाता है. मंदिर के पुजारी पुरुषोत्तम के अनुसार मान्यता है कि एक गाय रोज जाकर इस शिवलिंग पर दूध चढ़ाती थी. एक दिन गाय को ग्वाले ने ऐसा करते देख लिया. गुस्से में उसने जहां गाय द्वारा दूध चढ़ाया जाता था, वहां डंडे से प्रहार कर दिया. जैसे ही उसने डंडा मारा, कुछ टूटने की आवाज आई. ग्वाले को उस जगह की सफाई करने पर वहां एक शिवलिंग मिला, जहां बाद में मंदिर का निर्माण करवाया गया. अक्सर शिवलिंग के पास कनकी के दाने(चावल) पड़े होने के कारण मंदिर का नाम कनकेश्वर महादेव पड़ा. मंदिर के स्थापित होने के बाद गांव बस गया, जिसका नाम कनकी पड़ा.
200 साल पहले हुआ था मंदिर का निर्माण
उन्होंने Local18 को आगे बताया कि यह मंदिर पुरातात्विक महत्व के साथ स्वयंभू शिव मंदिर में गिना जाता है. ऐतिहासिक दृष्टि से मंदिर अति प्राचीन है. स्वयंभू शिवलिंग के स्थापित होने का संवत अथवा ईसा सन स्पष्ट नहीं है. मंदिर का निर्माण कोरबा जमींदार परिवार ने 200 साल पहले किया था. 50 फीट ऊंचे मंदिर का निर्माण स्थापत्य कला को दर्शाता है. मंदिर के पुजारी पुरुषोत्तम प्रसाद यादव के अनुसार, उनके ही पूर्वज बैजू यादव ने शिवलिंग की खोज की थी, जिनकी 18वीं पीढ़ी वर्तमान में यहां सेवा कर रही है.